समय में थमा हुआ शहर चेत्तिनाड,जहाँ हवेलियाँ बोलती हैं

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  Chettinad a timeless town दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य में स्थित चेत्तिनाड एक ऐसा क्षेत्र है जिसने भारतीय इतिहास में अपनी विशेष पहचान बनाई है। यह क्षेत्र नागरथर या चेत्तियार समुदाय का पारंपरिक घर माना जाता है। नागरथर समुदाय अपनी व्यापारिक समझ, उदार दानशीलता और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है। सदियों पहले जब भारत व्यापार के केंद्रों में से एक था, तब इस समुदाय ने बर्मा, श्रीलंका, मलेशिया और सिंगापुर जैसे देशों में व्यापार का विशाल नेटवर्क स्थापित किया। इस वैश्विक दृष्टि और संगठन ने चेत्तिनाड को समृद्धि और पहचान दिलाई। भव्य हवेलियों में झलकती समृद्धि चेत्तिनाड की सबसे प्रभावशाली पहचान इसकी भव्य हवेलियों में झलकती है। इन हवेलियों का निर्माण उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी के बीच हुआ था, जब नागरथर व्यापारी वर्ग अपने स्वर्ण काल में था। बर्मी टीक की लकड़ी, इटली की टाइलें और यूरोपीय संगमरमर से सजे ये घर भारतीय पारंपरिक वास्तुकला और विदेशी प्रभाव का अद्भुत संगम प्रस्तुत करते हैं। विशाल आंगन, नक्काशीदार दरवाजे और कलात्मक खिड़कियाँ इन हवेलियों को एक अलग ही भव्यता प्रदान करती हैं। ...

राज्य: एक आवश्यक बुराई – हर्बर्ट स्पेंसर का दृष्टिकोण


प्रसिद्ध ब्रिटिश दार्शनिक हरबर्ट स्पेंसर
राज्य एक आवश्यक बुराई है — यह विचार गहरे राजनीतिक और दार्शनिक विमर्श का हिस्सा रहा है। यह कथन प्रसिद्ध ब्रिटिश दार्शनिक हरबर्ट स्पेंसर (Herbert Spencer) से जुड़ा है, जिन्होंने राज्य की भूमिका पर कई क्रांतिकारी विचार प्रस्तुत किए। वे मानते थे कि राज्य का अस्तित्व इसलिए है क्योंकि मनुष्य स्वयं अपने नैतिक दायित्वों का पालन नहीं करता। अगर समाज में सभी व्यक्ति आत्म-नियंत्रण, न्याय और पारस्परिक सहयोग से कार्य करें, तो राज्य की कोई आवश्यकता नहीं रह जाती।

हरबर्ट स्पेंसर जैसे चिंतकों के अनुसार, राज्य का निर्माण मानव समाज की कमजोरियों को संतुलित करने के लिए हुआ है। यह व्यवस्था समाज में कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए जरूरी तो है, लेकिन यह हमेशा स्वतंत्रता पर नियंत्रण भी लगाता 

सीलिए इसे "आवश्यक बुराई" कहा गया है — ऐसी बुराई जो न हो तो अराजकता फैले, और हो तो स्वतंत्रता सीमित हो जाती है।

ऐसे कई विचारक रहे हैं जिन्होंने राज्य की सीमाओं और उसकी अनिवार्यता को लेकर सवाल उठाए। थॉमस पेन (Thomas Paine), एक और विख्यात विचारक, ने भी कहा था 

कि "राज्य एक जरूरी बुराई है," खासकर तब जब वह लोगों की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करता है या अपने दायरे से बाहर जाकर सत्ता का दुरुपयोग करता है।

राजनीतिक दर्शन में यह विचार बार-बार सामने आता है कि राज्य को छोटा, सीमित और जवाबदेह होना चाहिए। लिबर्टेरियन विचारधारा, जो न्यूनतम राज्य और अधिकतम व्यक्तिगत स्वतंत्रता की पक्षधर है, इसी धारणा पर आधारित है।

आधुनिक युग में भी यह बहस जीवंत है — क्या राज्य हमारी स्वतंत्रता की रक्षा करता है, या उसे सीमित करता है? क्या हम ऐसे समाज की कल्पना कर सकते हैं जहाँ राज्य की जरूरत ही न हो?

इन सवालों का कोई आसान उत्तर नहीं है, लेकिन यह निश्चित है कि "राज्य एक आवश्यक बुराई है" केवल एक विचार नहीं, बल्कि एक चुनौती है — समाज के हर नागरिक के लिए यह सोचने की कि हम किस तरह की व्यवस्था में जीना चाहते हैं।


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